
आज हम बहुत प्रसन्न हैं, इसलिए कि श्री रामचंद्र जी आर्य थे, और हम भी आर्य हैं। हम उनके वंशज हैं, वे हमारे पूर्वज हैं। ′एक प्रकार से आज हमारे दादा श्री रामचन्द्र जी महाराज के स्मारक का उद्घाटन हो रहा है, इसलिए हमें बहुत प्रसन्नता है।
श्री रामचन्द्र जी महाराज वेदों के विद्वान्, न्यायकारी, सत्यवादी, प्रजा के अत्यंत प्रिय, दुष्टों को दंड देने वाले, सज्जनों का सम्मान करने वाले, रघुकुल की परंपराओं के रक्षक, माता पिता के सेवक, भाइयों के साथ प्रेम करने वाले, सब के साथ न्याय पूर्ण व्यवहार करने वाले, अति उत्तम आर्य राजा थे। उनके आदर्श आज लाखों वर्ष बाद भी जीवित हैं, तथा सब आर्यों की एवं संसार भर के मनुष्यों की प्रेरणा के स्रोत हैं, अर्थात सब संसार को जीवन की दिशा दिखाने वाले हैं।

वे सच्चे ईश्वर भक्त थे, सब कार्य वेदों के अनुसार करते थे। प्रतिदिन यज्ञ संध्या उपासना तथा निराकार ईश्वर का ध्यान करते थे। आज के दिन उनके जीवन से हम सब को भी ये गुण धारण करने चाहिएँ।
आज अपने घर, आर्य समाज तथा अपनी संस्थाओं में यज्ञ हवन करें। उसमें बढ़िया शुद्ध देसी घी और उत्तम हवन सामग्री का प्रयोग करें , जिससे आप और अन्य लोग भी स्वस्थ रहें, तथा सब की आयु बढ़े। श्री रामचन्द्र जी महाराज के संबंध में उत्तम भजन एवं प्रवचन करें। लोगों को श्री रामचन्द्र जी महाराज के गुणों से परिचित करावें।
आप सब लोग इस प्रकार की अपील श्री राम मंदिर संचालन समिति को भेजें। कि *श्री रामचन्द्र जी महाराज प्रतिदिन यज्ञ करते थे। इसलिए अयोध्या में स्थित राम मंदिर में प्रतिदिन यज्ञ का अनुष्ठान होना चाहिए। वे वेदों के विद्वान थे, इसलिए वहां वेदों का अध्ययन अर्थात पठन-पाठन गुरुकुल आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। पुरुषों के लिए “श्री राम आर्य गुरुकुल” बनाना चाहिए। और माता सीता जी भी वेदों की विदुषी थी, इसलिए वैदिक विधान के अनुसार पुरुषों के गुरुकुल से कुछ दूरी पर स्त्रियों के लिए अलग से “माता सीता आर्या कन्या गुरुकुल” बनाना चाहिए। यदि वहां ऐसा हो जाए, तो हमारे आदर्श पुरुष श्री रामचन्द्र जी महाराज का मंदिर बनाना बहुत ही सार्थक एवं पूर्ण होगा। इसके बिना उसमें अपूर्णता रहेगी।*
आइए, सभी मिलकर बड़े उत्साह से इस उत्सव को मनाएं और ज़ोर से बोलें, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी महाराज की जय। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी महाराज की जय। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी महाराज की जय।
निवेदक –
स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक, दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात, एवं सुंदर पुर, रोहतक, हरियाणा।

