
*“कालाधीनं जगतसर्वम*” प्राणियों के व्यावहारिक एवं परमार्थिक सभी कार्य काल आधीन है यानी समय के आधीन है और काल ज्योतिष शास्त्र के आधीन है।ज्योतिष शास्त्र को वेदों के चक्षु यानी आंखें कहा गया है” *ज्योतिषं वेदानां चक्षुः”* । उदाहरण के लिए- यदि हमारा गंतव्य मार्ग क्षतिग्रस्त है। हम उस मार्ग जायेंगे तो हमारा मार्ग बाधित हो जायेगा। हम अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाएंगे। यदि हमें पहले से पता होता कि मार्ग क्षतिग्रस्त है तो उस दिन हम यात्रा स्थगित कर देते या फिर, दूसरे मार्ग से चलते। ज्योतिष हमें हमारे जीवन का नक्शा प्रदान करता है। जिसमें की सटीक जानकारी होती है।
*ज्योतिष शास्त्र भविष्य फल जानने का मात्र एक ही शास्त्र है अन्य इसकी उप शाखाएं हैं।*
*जैसे* अंक ज्योतिष, क्षुत विचार (छींक विचार), प्रश्न प्रकरण,वर्षफल, रमल (पास विद्या) सामुद्रिक शास्त्र और हस्त विज्ञान,स्वप्न ज्योतिष, स्वर विज्ञान,अंक ज्योतिष ।
*अंक ज्योतिष*
आज के आधुनिक युग में हर तरफ अंको का खेल देखा जा सकता है जैसे फोन नंबर, बैंक के खाते का नंबर, बीमे की पॉलिसी, घर के नंबर से लेकर पासपोर्ट के नंबर तक यही दर्शाते हैं कि अंक हमारे जीवन पर छाए हुए हैं।मूल ज्योतिष और ज्योतिष की उप- शाखाओं की मदद से हम अपने जीवन को उज्जवल बना सकते हैं।
*प्रश्न प्रकरण*
जिस नक्षत्र में प्रश्न किया गया हो उसके अनुसार प्रश्न कुंडली बनती है जिससे प्रत्येक शुभाशुभ का चिंतन प्रश्न द्वारा ही होगा। प्रश्नकाल में प्रश्न का लग्न बनाकर तात्कालिक ग्रह स्थिति के अनुसार भी भविष्य की सूचना ज्ञात की जा सकती है। अमुक कार्य होगा या नहीं,किस प्रकार होगा इत्यादि अनेक प्रश्न लोग ज्योतिषियों को पूछते है।
*रमल पास*
रमल पास विद्या प्रश्न ज्योतिष को पोषित करती एक विद्या रमल अर्थात पास विद्या भी है, इसमें पाशो में कुछ चिन्ह बने होते हैं उन्हें फेंकने पर चिन्हो की जो स्थिति बनती है उसके अनुसार ही प्रश्न का उत्तर दिया जाता है। रमल शब्द अरबी भाषा का है और इस समय संस्कृत के जो ग्रंथ उपलब्ध है उनमें पारिभाषिक शब्द प्रायः अरबी के ही हैं किंतु शंकर बालकृष्ण दीक्षित जी ने इसे भारतीय माना है और तंजौर राजकीय पुस्तकालय की गर्ग संहिता में इसके वर्णन का उल्लेख किया है।सामुद्रिक शास्त्र और हस्त विज्ञान
सामुद्रिक शास्त्र में जो सबसे अत्यधिक प्रचलित है वह है हस्त विज्ञान जिसमें हाथ की बनावट रूप रंग और रेखाओं से भूत भविष्य एवं वर्तमान की स्थिति ज्ञात होती है। स्वप्न ज्योतिष और अंक ज्योतिष स्वर विज्ञान रत्न विज्ञान यह सामुद्रिक शास्त्र में ही वर्णित है।हम जिस नक्षत्र में जन्म लेते हैं उसी नक्षत्र के अनुसार हमारा व्यक्तित्व होता है एवं ग्रह हमारे कुंडली में किस भाव में कैसे बैठे हैं कितने डिग्री पर है आदि कई चीजों को देखकर कि हमारे कुंडली में कौन-कौन से शुभ एवं अशुभ योग बन रहे हैं, उनके अनुसार ही हमारा भूत भविष्य एवं वर्तमान में प्रभाव होता है। ग्रहोंपचार करके हम अपनी कुंडली के अशुभ दोषों को दूर कर सकते हैं एवं अपना अच्छा वर्तमान एवं भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। सौरमंडल में सात ग्रह है और राहु -केतु छाया ग्रह है। यही छाया ग्रह हमारे जीवन पर शुभाशुभ प्रभाव डालते हैं।राहु के कारण ही सूर्य चंद्रमा पर ग्रहण लगता है, ग्रहण की जानकारी आधुनिक विज्ञान अब दे रहा है, परंतु हजारों साल पहले हमारे ऋषि मुनि कब का यह बात सिद्ध कर चुके हैं कि ग्रहण क्यों लगता है ग्रहण का हम पर जो भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है वह भी हमारे शास्त्र उल्लेखित किया जा चुका हैं।
सभी युवाओं एवं सभी की रुचि की आवश्यकता की रुचि है।
ज्योतिष शास्त्र अन्य शास्त्रों की तरह बहुत ही समृद्ध शास्त्र है, आवश्यकता है तो आज के युवाओं को यह शास्त्र पढ़ने की समझने की एवं इसका पालन करने की,परंतु विडंबना यह है कि वेद शास्त्रों से हमारा युवा दूर पाश्चात्य संस्कृति की ओर जा रहा है। हां पाश्चात्य संस्कृति में भी हस्तरेखा एवं टैरो कार्ड के ज्ञाता है। किरो एवं वेन्हम बहुत अच्छे हस्तरेखा के ज्ञाता रहे हैं, हस्तरेखा एक यूनानी पद्धति है। हमारी गुरुकुल पध्यति को यदि खत्म नहीं किया जाता तो वेद वेदांगों के अध्ययन एवं पालन से हमारा देश समृद्ध रहता।ज्योतिष शास्त्र से ही यह सारी विद्याए पश्चिमी देशों में गई है।यदि सभी को ज्योतिष की थोड़ी बहुत भी जानकारी है तो वह उन समस्याओं का समाधान स्वयं भी कर सकता है। जन्मतिथि,जन्मदिन एवं जन्म समय के आधार पर भूत भविष्य वर्तमान की सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है एवं ग्रह पूजन एवं ग्रहों के उपचार से ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव खत्म किया जा सकता है एवं सकारात्मक प्रभाव बढ़ाया जा सकता है। सोलह संस्कारो में भी ज्योतिष का बहुत महत्व है।

