
देहरादून। आचार्या पारोमिता ने कहा कि ब्रह्मांड केवल ग्रहों-नक्षत्रों और आकाशगंगाओं का समूह नहीं है, बल्कि यह एक अनंत ऊर्जा जाल है। हर वस्तु, हर कण, हर विचार और हर जीव इसी ऊर्जा से जुड़ा है। आधुनिक विज्ञान भी अब मानता है कि पदार्थ और ऊर्जा अलग नहीं, बल्कि एक ही स्वरूप हैं।
उन्होंने बताया कि आइंस्टीन ने अपने प्रसिद्ध समीकरण के माध्यम से स्पष्ट किया कि हर स्थूल वस्तु ऊर्जा में और हर ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो सकती है। यह वही सिद्धांत है, जिसे हमारे वेद, पुराण और उपनिषद सदियों पहले प्रकट कर चुके हैं।
आचार्या पारोमिता ने कहा कि, “हमारे वेद-पुराण और उपनिषद ही मानव जीवन में ऊर्जा के प्रवाह का मूल आधार हैं। इन ग्रंथों में प्राण, शक्ति और ब्रह्मांडीय नाद का उल्लेख इसीलिए किया गया है कि मनुष्य अपने भीतर और बाहर की ऊर्जा को संतुलित कर सके।”
उन्होंने बताया कि ग्रह और नक्षत्र केवल भौतिक पिंड नहीं हैं, बल्कि ये ऊर्जा केंद्र हैं। सूर्य की किरणें, चंद्रमा की तरंगें और पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र मिलकर एक विशाल ऊर्जा नेटवर्क का निर्माण करते हैं, जिसका सीधा असर मानव जीवन पर पड़ता है।
आचार्या ने कहा कि साधक जब ध्यान, योग और मंत्रजप करता है तो वह अपनी आंतरिक ऊर्जा को इस ब्रह्मांडीय ऊर्जा जाल के साथ संतुलित करता है। यही साधना आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग खोलती है।
उन्होंने यह भी बताया कि हमारे विचार और भावनाएँ केवल व्यक्तिगत नहीं रहतीं। ये भी इस ऊर्जा जाल के माध्यम से दूसरों और पूरे ब्रह्मांड पर प्रभाव डालती हैं। “सकारात्मक सोच और कर्म इस जाल को सामंजस्य में रखते हैं, जबकि असत्य, क्रोध और नकारात्मकता इसे विकृत करती है।”
अंत में आचार्या पारोमिता ने कहा कि ब्रह्मांड एक जीवंत और गतिशील ऊर्जा जाल है। जब हम अपने भीतर की ऊर्जा को इसके साथ सामंजस्य में लाते हैं, तभी जीवन का असली अर्थ और सृष्टि का रहस्य समझ पाते हैं।